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लिथियम बैटरी का उपयोग कई अलग-अलग उपकरण में किया जाता है.जैसे की एनर्जी स्टोरेज सिस्टम, इलेक्ट्रिक व्हीकल,खिलौने,कैमरा इत्यादि.सभी उपकरण के लिए अलग-अलगशॉप और साइज की बैटरी की आवश्यकता होती है.इसीलिए हमें यह सभी बैटरी अलग-अलग शेप और साइज में देखने को मिलती है.
लिथियम बैटरी का उपयोग चाहे कहीं पर भी किसी भी उपकरण में हो रहा हो लेकिन सभी लिथियम बैटरी को बनाने की प्रक्रिया एक जैसी होती है.तो आज हम आपको बताने वाले हैं कि लिथियम बैटरी को बनाने के लिए किन-किन कंपोनेंट का उपयोग किया जाता है और कैसे लिथियम बैटरी बनाई जाती है
लिथियम बैटरी बनाने के लिए जरूरी कॉम्पोनेंट्स
तो सबसे पहले आपको पता होना चाहिए कि लिथियम बैटरी बनाने के लिए कौन-कौन से कंपोनेंट का उपयोग किया जाता है.
लिथियम बैटरी बनाने के लिए अलग-अलग सेल का उपयोग किया जाता है.और लिथियम बैटरी की बॉडी बनाने के लिए भी अलग-अलग sheets का उपयोग किया जाता है.cells को आपस में जोड़ने के लिए अलग-अलग Holder का उपयोग भी किया जाता है. जिनकी पूरी सूची नीचे दी गई है.
- लिथियम Cells जैसे : निकेल-मैग्नीशियम-कोबाल्ट लिथियम-आयन Cells , या NMC Cells
- लिथियम फेरोफॉस्फेट या LFP Cells
- Prismatic Cells
- सेल Holder
- निकल Strips
- बैटरी प्रबंधन प्रणाली या BMS
- तार जैसे डीसी तार, सेंसर तार आदि।
- Barley कागज
टेप जैसे एफआरपी टेप, कैप्टन टेप, फिलामेंट टेप, डबल-साइडेड टेप आदि।
विभिन्न प्रकार की बॉडी जैसे स्टेनलेस स्टील, माइल्ड स्टील, प्लास्टिक कंटेनर, एपॉक्सी फाइबरग्लास बॉडी, एफआरपी शीट बॉडी, हीट-श्रिंक शीट बॉडी, आदि।
लिथियम बैटरी में उपयोग होने वाले सभी कंपोनेंट में से सिर्फ लिथियम सेल ही बाहर से Import किए जाते हैं बाकी लगभग सभी समान भारत में ही बनाया जाता है.
लिथियम बैटरी बनाने के लिए जरूरी मशीन
लिथियम बैटरी बनाने के लिए कई अलग-अलग प्रकार की मशीन का उपयोग किया जाता है क्योंकि लिथियम बैटरी में लगने वाले Cells की टेस्टिंग से लेकर Welding तक अलग-अलग मशीनों का उपयोग किया जाता है.इन सभी मशीनों की सूची आपको नीचे दी गई है.
- Cell Grading Machine
- Cell Sorting Machine
- Auto-insulating Sticker Pasting Machine
- CCD Inspection Machine
- Automatic Spot Welding Machine
- Automatic Laser Welding Machine
- Battery Testing Machine
लिथियम बैटरी कैसे बनती है
तो अब आपको लिथियम बैटरी बनाने के समान और मशीनों का पता लग गया है अब बात करते हैं कि इनका उपयोग करके कैसे एक पूरी लिथियम बैटरी को बनाया जाता है.
1.Cell grading
सबसे पहले लिथियम बैटरी में लगने वाले Cells की Grading की जाती हैइस मशीन में cell को पूरी तरह सेचार्ज और डिस्चार्ज करके टेस्ट किया जाता है.
इसके बाद में cell को उनकी कैपेसिटी के अनुसार categorize किया जाता है. जैसे की हमारे पास अगर 3.2v के cells है तो उनमें आगे फिर decimal तक वोल्टेज को चेक करके cells को categorize किया जाता है.उदाहरण के लिए, 3.23v, 3.25v और 3.28v ऐसे अलग-अलग Volt के cells को अलग-अलग categorize किया जाता है.
इन सेल्स को अलग करनेका सबसे बड़ा कारण है कि लिथियम बैटरी में अगर आप अलग-अलग Volt के सेल्स का उपयोग करते हैं तो उसे बैटरी की लाइफ पर काफी गलत प्रभाव पड़ता है.इसीलिए बैटरी में लगने वाले सभी सेल्स की volt को Same रखा जाता है.
2.Cell Sorting
यह प्रक्रिया Cell grading भी के जैसी ही है. लेकिन इस प्रक्रिया के अंदर cells को उनकी voltage और internal resistance के आधार पर अलग-अलग किया जाता है. जिससे किलिथियम बैटरी में लगने वाले सभी सेल्स की voltage और internal resistance को एक जैसा रखा जा सके.
3.Applying Barley Paper for Insulation
यह एक प्रकार का insulation paper है जो Cells को इंटरनल शॉर्ट सर्किट होने से बचने के लिए इसका उपयोग किया जाता है. यह प्रक्रिया ऑटोमेटिक और मैनुअल दोनों तरह से की जा सकती है.यह पेपर लगने के बाद में सेल बैटरी में लगने के लिए तैयार हो जाता है.
4.Cells को Cell Holder में लगाना
Cells को आपस में लगाने के लिए सेल होल्डर का उपयोग किया जाता है.इसमें छोटे-छोटे वर्गाकार बॉक्स बने होते हैं जो की एक दूसरे से जुड़े होते हैं.जिनके अंदर सेल्स को लगाया जाता है और सेल होल्डर को सेल के ऊपर और नीचे दोनों तरफ लगाया जाता है. सेल Holder की मदद से कितने भी सेल्स को बैटरी में लगाया जा सकता है. जितनी बड़ी बैटरी होगी, उतने ज्यादा सेल्स उसमें लगाए जाते हैं.
5. Inspection of the Cells
सेल होल्डर में लगने के बाद में उनको देखकर यह चेक किया जाता है कि पॉजिटिव और नेगेटिव टर्मिनल सही तरह से लगाए गए हैं या नहीं अगर कोई एक सेल भी गलत लग जाए तो पूरी बैटरी काम नहीं करेगी इसको चेक करने के लिए CCD मशीन का उपयोग किया जाता है.
6.Soldering or Welding The Cells
CCD मशीन से पास होने के बाद में सभी सेल्स को आपस में जोड़ने के लिए सपोर्ट वेल्डिंग का उपयोग किया जाता है इसके लिए nickel strips का उपयोग किया जाता है. यह काम मैन्युअल और मशीन की मदद से भी किया जाता है. जिसके लिए अलग-अलग मशीन की जरूरत पड़ती है इसके बारे में नीचे आपको बताया गया है.
- Manual Spot Welding
इस मशीन में ऑपरेटर को फुट पेडल की मदद से बैटरी में वेल्डिंग करनी पड़ती है और उसे मैन्युअल बैट्री पैक को एडजस्ट करके सभी सेल को एक-एक करके वेल्ड करना पड़ता है. इसके अंदर काफी ज्यादा समय लग जाता है.
- Automatic Spot Welding
इस मशीन में बैट्री पैक को एक बार लगाने के बाद में कंप्यूटर ऑटोमेटिक बैटरी पैक को एनालाइज करके सभी सेल को ऑटोमेटिक वर्ल्ड कर देता है और यह काम काफी जल्दी हो जाता है. जिससे कि काफी समय बच जाता है और काफी कम समय में कई बैट्री पैक को बंद किया जा सकता है.
- Automatic Laser Welding
इस वेल्डिंग का उपयोग बड़े सेल को जोड़ने के लिए किया जाता है इसमें बैट्री पैक को मशीन में लगा दिया जाता है और कंप्यूटर में उसको एनालाइज करके ऑटोमेटेकली लेजर से वेल्ड कर दिया जाता है और यह पूरी प्रक्रिया कंप्यूटर में भी दिख जाती है कि कैसे कौन सा सेल वर्ल्ड हो रहा है.
सभी अलग-अलग वेल्डिंग करने के तरीके में अपने फायदे और कुछ कमियां है लेकिन यह डिपेंड करता है कि कौन से सेल के लिए कौन सी वेल्डिंग करना सही रहता है और इस आधार पर वेल्डिंग का तरीका सिलेक्ट किया जाता है.
7.Arrange the Lithium Cell Strings
वेल्डिंग होने के बाद में बैट्री पैक को ईपॉक्सी sheet इंसुलेटर पेपर और अलग-अलग टेप की मदद से जोड़ दिया जाता है.
लेकिन अभी भी यह बैटरी पूरी नहीं हुई क्योंकि लिथियम बैटरी को लेड एसिड बैटरी की तरह सीधे उपयोग नहीं किया जा सकता इसके लिए आपको BMS लगाने की आवश्यकता पड़ती है.
8.Connecting a BMS
BMS यानी के बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम. यह एक प्रकार का कंप्यूटर सर्किट होता है जो की बैटरी में अलग-अलग स्ट्रिंग के साथ में जोड़ दिया जाता है. जिससे कि सेल्स की चार्जिंग डिस्चार्ज हिट इत्यादि को मॉनिटर किया जा सके और सेल की सुरक्षा और लाइफ को बढ़ाया जा सके.
यह पूरी बैटरी का दिमाग की तरह काम करता है जो की बैटरी को ऑप्टिमाइज और प्रोटेक्ट करता है और बैट्री हेल्थ को मॉनिटर करता है.
मार्केट में हमें अभी दो तरह के BMS देखने को मिलते हैं.
- Normal BMS : यह एक साधारण बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम होता है जो की लिथियम बैटरी में लगाया जाता है यह अपने आप बैटरी को ऑप्टिमाइज करके बैटरी की हेल्थ और लाइफ को बढ़ाने में मदद करता है.
- Smart BMS : स्मार्ट बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम में अलग-अलग सेंसर दिए जाते हैं इसी के साथ इसमें ब्लूटूथ ट्रांसमीटर डिवाइस को लगा दिया जाता है जिससे की बैटरी का सारा डाटा आपके फोन पर भी देखा जा सकता है ।
9.Lithium Battery Testing
बैटरी मैनेजमेंट सिस्टम लगते ही लिथियम बैटरी पूरी तरह से बंद कर तैयार हो जाती है अब इसको सिर्फ टेस्ट करके यह देखा जाता है कि बैटरी सही तरह से कम कर रही है या नहीं।
बैटरी की टेस्टिंग करने के लिए इस मशीन में लगाया जाता है जहां पर बैटरी को चार्ज और डिस्चार्ज करके इसकी कंप्यूटराइज रिपोर्ट तैयार कर दी जाती है।
अगर बैटरी इस टेस्ट में पास हो जाती है तो यह बैटरी उपयोग करने के लिए तैयार हो जाती है।
10.Lithium Battery Body
बैटरी टेस्ट में पास होने के बाद में अब उसे बॉडी में डाला जाता है यह बॉडी स्टेनलेस स्टील माइल्ड कार्बन स्टील और प्लास्टिक की हो सकती है। लिथियम बैटरी की बॉडी उसकी जरूरत के अनुसार लगाई जाती है जैसे कि अगर ज्यादा बड़ी और हैवी लिथियम बैटरी बनानी है तो उसे स्टेनलेस स्टील की बॉडी में लगाया जाता है अगर कोई छोटी बैटरी बनानी है तो वहां पर प्लास्टिक का कंटेनर भी उसे किया जा सकता है।
Conclusion
तो यह जानकारी थी लिथियम बैटरी बनाने के बारे में। उम्मीद है अब आपको पता लग गया कि लिथियम बैटरी कैसे बनाई जाती है और कौन-कौन से कंपोनेंट का उपयोग किया जाता है।
अगर आप भी लिथियम बैटरी का उपयोग अपने घर में करना चाहते हैं तो आप इसका इस्तेमाल कर सकते हैं क्योंकि लिथियम बैट्री लगाने के बहुत सारे फायदे होते हैं।
जैसे कि लिथियम बैटरी वजन में काफी हल्की होती है। लिथियम बैटरी की लाइफ दूसरी लेड एसिड बैटरी के मुकाबले कई गुना ज्यादा होती है। इस बैटरी की कोई भी मेंटेनेंस नहीं होती इसे आपको एक बार लगाना है और उपयोग करना है।
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